जरा सोचिए ... लेख

जरा सोचिए... 

जरूरी नहीं की हर रिश्ते में प्रेम हो। क्योंकि प्रेम ऐसी चीज है किसे से हो सकता है या सब कुछ होते हुए भी नहीं हो सकता, लेकिन रिश्तों के बीच सबसे प्रमुख चीज एक दूसरे को सुनना और समझना होता है। आदमी की जिंदगी सामाजिक तौर पर बहुत मजबूत मानी जाती है। पर जिनके बीच होती है उनके बीच भले गहरा प्रेम न हो लेकिन अगर एक दूसरे को समझने की शक्ति नहीं है तो वह ठीक बात नहीं। हमारे भारतीय समाज में परिवार की बड़ी भूमिका होती है। स्त्री, पुरुष के परिवार में जाती है और आज के समय में बहुत कम परिवार है जो आज भी लड़कियों को लड़कों जितनी शिक्षा नहीं दे रहा। सब चाहते हैं की लड़की हो चाहे लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो सके और निर्णय लेने और उस निर्णय लेने के पीछे की रीड स्वयं विकसित करे । सवाल यहां उठता है की अगर अपने घर की लड़की है तो उसे संस्कारित और अच्छा परिवार में शादी करना चाहते हैं और अगर लड़की को ब्याह कर लाते हैं तो अक्सर उसे अपने पैर पर खड़ा होने, चाहे उसके ढंग से परिवार चलाने देने से रोकते हैं। अपने ऊपर लेके सोचें की अगर अपने घर की लड़की को विदा करते हैं तो यह स्वीकार कर सकते हैं क्या की उसपे कोई हाथ उठा दे, उसपर अत्याचार हो, उसकी कला या प्रतिभा को दबाया जाए। पुरुष प्रधान समाज ठीक है लेकिन कहीं न कहीं ऐसी प्रधानता की स्त्री की आंतरिक स्वतंत्रता, उसकी कला, उसकी प्रतिभा का दमन हो, उसे पुराने ढंग से उसका रोना, हंसना, क्रोध , संपूर्ण भाव उसके घूंघट के तले सीमित कर उसके भीतर अभिव्यक्त न होने वाले भावों को जहर की तरह भरने देना कहां का न्याय है। बड़ी विडंबना है आदमी ऊपर ऊपर अच्छा बन बाहर से जैसे जूता चमकता है वैसे चमकना और अंदर से जैसा पैर सड़ा हो कुछ ऐसा बनता दिख रहा है हमारा समाज और उसके आगे बढ़ते दिखते लोग। सिर्फ पैसे कमा लेने से और, मुझे तो लगता है अधिक पैसा वे ही कमा रहे जो भीतर से खोखले हैं और उनका खोखलापन को किसी न किसी रूप में जस्टिफाई करना उन्हें ऊपर ऊपर चमकने का प्रयास मात्र है। स्त्रियों को दुनिया कभी स्वीकार नहीं करती, कुछ जो अपने बल बूते पर खड़ी होती हैं उन्हें तमाम निकृष्ट उपाधि तक दे दी जाती है। असल में स्वयं दुनियादारी में जीने वाला मनुष्य होने के कारण यह बात कुछ कुछ समझ आती है कि यहां मामला जलन का होता है। कोई आगे बढ़ता है तो लोग टांग खींचने आगे पहुंच जाते हैं। समाज जिसे अत्यंत महान माना जाता है, जिसके लिए इंसान अपना सब दाव पर लगा के उसमे स्थापित होता है, वही कहीं न कहीं उसी की टांग खींच देता है। आज का समय कितना जटिल मालूम पड़ रहा है। इसका अंदाजा कुछ थोड़ी भी बुद्धि वाला जो सिर्फ पैसे को सब कुछ नहीं समझता कुछ पारिवारिक, कुछ दूसरों को समझने वाले मूल्य जिनमे जीवित है वे समझ सकता है। आज कल तमाम ऐसे बातें समाज में सुनाई दे रहीं की साहब हमारे यहां तो लड़की आई वो बहुत चालाक निकली, अंत में छुट्टा करना पड़ा और दे-ले के मामले को शांत करना पड़ा। अरे विचित्र मानसिकता ! यहां भी मूल में धन, संपत्ति! अच्छा हुआ, यह हुआ क्योंकि जो लड़की या लड़का प्रेम को केंद्र में रख कर ब्याह किए, उनके बीच दुनियादारी और मूर्खता थोपना, लगातार नीचता दिखाना जाहिर है कैसे दरारें पैदा नहीं करेगा। कितना महत्वपूर्ण हो गया है समाज, कितना महत्वपूर्ण हो गया है धन, कितना महत्वपूर्ण हो गया है तथाकथित लोगों का अहम की वह प्रेम को पचा नहीं सकता, चला है क्रूर दुनिया में इज्जत कमाने.. 

हे मित्रों मुझे क्या मतलब क्या घट रहा समाज में लेकिन जब जब सुनता हूं लोगो के बीच ऐसी बात हो रही , कोई किसी न किसी को नीचा दिखाने में लगा है । मेरा मन स्तब्ध होता है, क्रोध की भी सीमा लेकिन दया भी आती है। जो दुनिया प्रेम के नाजुक लेकिन अत्यंत मजबूत मूल्य पर चल सकती है , जो दुनिया अगर इंसान थोड़ा झुक जाए तो उसका सौन्दर्य उसे दिख सकता है , जो दुनिया कवियों-लेखकों-चित्रकारों की कलम की छिड़की हुई स्याही मात्र का पालन करने से दिव्य हो सकती है । उसके मूल में कितना अपने अहंकार को प्रत्यक्ष और उससे भी ज्यादा अप्रत्यक्ष रूप से संतुष्टि देने की साजिश इस दुनिया को बरबादी का रास्ता चुनने को मजबूर कर रही.. बढ़ती पैसे की संस्कृति परिवारों के बीच ऐसे चुप्पी पैदा कर रही है, जो चुप्पी कहीं न कहीं ऐसी आवाज़ बन कर सामने आ रही जो सुनने वालों के लिए बात करने का मुद्दा मात्र बन रही । जहां हर आदमी मौन और अपनी दुनिया में मस्त है वहां एक एक व्यक्ति के बीच गॉसिप और चर्चा का विषय मात्र रह जाता है। जिनके परिवार में आज भरपूर पैसा है लेकिन साथ साथ चुप्पी है मित्रों वे परिवार , परिवार नहीं रह गया है वह सिर्फ लेन देन का स्थान है। जहां मेहनत का भी कोई सार्थक अर्थ नहीं है, यह मेहनत भी चुप्पी को छुपाने और उसपे पर्दा डालने का ही प्रयास मात्र है। और इसके शिकार हुए लोग मुझे लगता है अंदर ही अंदर इस बात से सहमत होंगे। सभी लोगों को समझने की जरूरत है की रिश्तों के बीच भले प्रेम हो ना हो लेकिन चुप्पी और पैसा को केंद्र में न आने दें। यह अत्यंत भयानक रूप होगा , एक तमाशा होगा जिसका समाज भी आनंद लेगा चर्चाएं करेगा और परिवार अपनी बरबादी का कारण स्वयं बनेगा। सबसे महत्वपूर्ण आज के समय यह है की सब कुछ लपकने और अपने बैंक बैलेंस बढ़ाने से पूर्व अपने घर , अपने प्रियजन के जरूरतों और उन्हें समय दें। अपनी रीड अपने परिवार को बनाएं न की धन और संपत्ति को जो खतम हो जाती है। एकदम से यह बातें दिमाग में आ गईं, पर जो लोग भी इसको पढ़ कर यहां तक पहुंचे हैं वे आज से समय को समझने और समझते हुए भी पर्दा डाल हुए लोगों के अंधेरे चित्त पर प्रकाश पड़ा होगा, इन बातों को मेरी प्रार्थना समझिए और जीवन को जटिल न बना कर, मन और अपने आप को समृद्ध करिए। बाकी सबके अपने अपने अनुभव होते हैं....

- अचिंत्य मिश्र

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