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मेरे बड़के बाबा और दादी : संस्मरण

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 मेरा लगाव उनसे तब बढ़ा जब वे बीमार पड़ने लगे थे और उनके लिए यह एक पड़ाव के अंत जैसा था। जैसे कोई व्यक्ति अपने कर्म छेत्र से रिटायर हो जाता है । वे रिटायर होकर गाँव से शहर आये थे। शहर का घर उनके छोटे भाई यानी मेरे बाबा द्वारा बनवाया हुआ था । बड़का बाबा दादी (बाबा के माँ बाप) के सबसे जेष्ठ पुत्र यानी (ताऊ जी, जिन्हें हम बड़के बाबा के ही नाम से संबोधित करते हैं ) और उनकी नवी संतान यानी मेरे बाबा में बाप-बेटे के उम्र का फर्क था , और प्रेम भी उतना ही था । पढ़ने लिखने में मेरे बाबा बहुत तेज़ थे, उनकी तमाम कहानियाँ बड़के बाबा और दादी जब घर आ गए थे तो सुनाया करते थे; जिसमें  से एक प्रकरण यह था कि जब मेरे बाबा आगे की शिक्षा लेने गोरखपुर आ गए थे तो बड़के बाबा बलरामपुर गोंडा में अपनी साठ रुपया तनख्वाह में से चालीस से पचास रुपया बाबा के पास भेज देते थे । बाबा चूँकि बहुत तेज़ थे, उन्होंने अपनी उन्नीस वषों तक आते आते परास्नातक की शिक्षा पास कर ली और पास होते ही उन्हें संत एंड्रयूज कॉलेज में अध्यापक की नौकरी भी मिल गयी थी | बड़के बाबा और दादी दोनों खाने-खिलाने के बहुत शौकीन थे । वे जब भी गोरखपुर आते थ...